कैसे करें नींबू की खेती : लेमन व लाइम नींबू वर्गीय फलों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारतवर्ष में लेमन व लाइम की खेती लगभग 219000 हैक्टेयर क्षेत्र में की जा रही है। जिनका कुल उत्पादन व उत्पादकता क्रमशः 21.08 लाख टन व 9.6 टन प्रति हैक्टेयर है।
नींबू के उत्पादन में आन्ध्रप्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, असम, राजस्थान, मध्यप्रदेश व पंजाब का मुख्य योगदान है। वर्ष भर फलों की उपलब्धता, प्रसंस्करण उद्योग में उपयोगिता विटामिन व प्रति आक्सीकारक की प्रचुरता एवं उपभोक्ताओं की स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता नींबू को और अधिक महत्वपूर्ण बनाते हैं।
वैज्ञानिक पद्धति से बाग प्रबंधन का अभाव नींबू के उत्पादन व गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है तथा बाग समय से पहले ही नष्ट हो जाते हैंअतः लम्बे समय तक व्यावसायिक उत्पादन लेने के लिए जलवायु के अनुसार किस्मों का चुनाव तथा उचित बाग प्रबंधन अति आवश्यक है।
नींबू की खेती के लिए मृदा एवं जलवायु
नींबू के सफल उत्पादन के लिए गहरी (1.5 मीटर तक कड़ी परत रहित), लवण रहित, अच्छे जल निकास वाली हल्की या मध्य दोमट मृदा जिसका पीएच मान 5.8–6.8 के मध्य हो, उत्तम मानी जाती है। ऐसी मृदाएं जिनका जलस्तर बहुत ऊंचा हो और समय-समय पर घटता-बढ़ता हो, नींबू के उत्पादन के लिए अनुपयुक्त मानी जाती है।
नींबू के उत्पादन के लिए गर्म, हल्की नमी युक्त व तेज हवा रहित जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। गर्मियों में अधिक तापमान व सिंचाई का अभाव जुलाई-अगस्त में आने वाली नींबू की फसल पर कुप्रभाव डालते हैं
नींबू की प्रजातियां
लेमन- यूरेका, लिस्बन, विल्लाफ्रेन्का, लखनऊ सीडलेस, कागजी कलां, पंत लेमन-1 आदि ।
लाइम- प्रमालिनी, विक्रम, सांई शरबती, जयदेवी, चक्रधारी, सीडलेस, ताहिती, एआरएच-1 आदि।
प्रवर्धन नींबू में बहुभ्रूणता पायी जाती है, अतः बीज से सफलतापूर्वक प्रवर्धित किया जा सकता है लेकिन बीज द्वारा बनाये गये पौधे प्रायः देर से फल देते है। इसलिए जुलाई-अगस्त में गूटी द्वारा भी आसानी से नये पौधे बनाएं जा सकते हैं जो शीघ्र फलन में आ जाते हैं। जहां फाइटोप्थोरा सड़न की समस्या हो नींबू के पौधे कालिकायन द्वारा प्रतिरोधी मूलवृत पर तैयार करने चाहिए।
नींबू के पौधों का रोपण
जिस क्षेत्र में नींबू के पौधों का रोपण करना हो उसकी अच्छी प्रकार सफाई करके जोतकर समतल कर लेना चाहिए । तत्पश्चात 5.0 मीटर की दूरी पर 0.75 मी. x 0.75 मी. x 0.75 मी. के गड्ढ़े रोपण से एक माह पूर्व खोदकर कुछ दिनों के लिए खुले छोड़ देने चाहिए। इसके बाद सड़ी हुई खाद व मिट्टी को बराबर मात्रा में मिलाकर गड्ढे भर देने चाहिए । यदि रोपण क्षेत्र में दीमक का प्रकोप हो तो गडढ़े में पौधे लगाने से पूर्व 2.0 मिली. क्लोरोपाइरीफोस का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर गड्ढे को उपचारित कर देना चाहिए गड्ढ़े भरने के बाद नीबू के पौधों को किसी विश्वसनीय स्रोत से मिट्टी की पिण्डी समेत अवांछित शाखाओं की छंटाई करके लाये तथा कम से कम समय में तैयार किये गये गड्ढों के बीचों बीच नर्सरी वाली गहराई पर सीधी अवस्था में रोपित करने के बाद मिट्टी को अच्छी प्रकार दबायें। रोपण का कार्य शाम के समय ही करें तथा रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई कर देनी चाहिए। जहां तक संभव हो, नींबू का रोपण जुलाई-अगस्त में करना चाहिए किन्तु यदि सिंचाई की समुचित व्यवस्था हो तो मार्च-अप्रैल में भी नींबू का रोपण सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
नींबू के पौधों का पोषण
वर्ष भर फल उत्पादन देने के कारण नींबू को अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है अतः खाद व उर्वरक का उचित मात्रा (सारणी-1) व समय पर प्रयोग करना अनिवार्य होता है।
सारणी-1: नींबू के वृक्षों में खाद एवं उर्वरकों की आवश्यकता (किग्रा./ वृक्ष)
वृक्ष की आयु (वर्ष) | गोबर की खाद | अमोनियम सल्फेट | सुपर फास्फेट | पोटेशियम सल्फेट |
1 | 20 | 0.250 | 0.250 | 0.250 |
2 | 25 | 0.500 | 0.500 | 0.250 |
3 | 30 | 1.000 | 1.000 | 0.500 |
4 | 40 | 1.500 | 1.500 | 1.500 |
5 | 50 | 2.000 | 2.000 | 2.000 |
5 | 60 | 2.500 | 2.500 | 2.000 |
कार्बनिक खाद की पूरी मात्रा दिसम्बर के अन्त में तथा नत्रजन व पोटाश की आधी मात्रा फरवरी-मार्च व शेष मात्रा जून-जुलाई में डालनी चाहिए फास्फोरस की पूरी मात्रा फरवरी-मार्च में डालनी चाहिए खाद व उर्वरकों को तने से 30 सेमी. दूर तथा पौधे की छतरी के फैलाव के अन्दरूप डालकर मिट्टी में मिलाकर सिंचाई कर देनी चाहिए।
नींबू की खेती के लिए सिंचाई
नींबू के पौधे वर्ष भर फल देते हैं अतः इनको पूरे वर्ष पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। नींबू के बागों में शरद ऋतु में एक माह व ग्रीष्म ऋतु में साप्ताहिक अंतराल पर सिंचाई आवश्यक होती है। सिंचाई पूर्व वृक्षों के तने पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए ताकि सिंचाई करते समय पानी तने के सम्पर्क में न आये । वर्षा ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती किन्तु जल निकास का उचित प्रबंध अनिवार्य होता है।
काट-छांट ।
प्रायः नींबू के वृक्षों में नियमित काट-छांट की आवश्यकता नहीं पड़ती लेकिन शुरूआत में सुदृढ ढांचा तैयार करना आवश्यक होता है। तने पर 60 सेमी. तक की ऊंचाई तक किसी शाखा को न बढ़ने दें तथा प्रति वर्ष दिसम्बर माह में सूखी व रोग ग्रसित शाखाओं को काटकर निकाल देना चाहिए ।
नींबू के फलों का फटना
नींबू में जुलाई-अगस्त में पकने वाले फलों का फटना एक गंभीर समस्या है। फटे हुए फल शीघ्र ही बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं तथा उपयोग के लायक नहीं रहते जिससे उत्पादक को काफी नुकसान उठाना पडता है। फल फटने से रोकने के लिए उचित समय पर सिंचाई करें तथा 10 मिग्रा. जिब्रेलिक अम्ल प्रति लीटर पानी या 40 ग्राम पोटेशियम सल्फेट प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव अप्रैल, मई तथा जून में करें। इसके अतिरिक्त अप्रैल से जून के बीच वृक्षों के नीचे पलटवार बिछाना भी फलों के फटने को रोकने में सहायक होता है।
नींबू के फल व फूलों का सड़ना
नींबू में फल व फूल झड़ना एक आम समस्या है जिससे फल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है अतः संतुलित मात्रा में सही समय पर पोषक तत्वों (कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर, जस्ता तथा बोरोन) का प्रयोग करें तथा 2,4-डी का 10 मिग्रा. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
पादप सुरक्षा
नींबू में कीट एवं रोग प्रबंधन सारणी-2 के अनुसार करना चाहिए।
सारणी-2: नींबू में कीट एवं रोग प्रबंधन
कीट/रोग | लक्षण | नियंत्रण |
माहू | मुलायम शाखाओं पर आने वाली पत्तियों तथा टहनियों का मुड़ना | 1.0-1.5 मिली. इमीडाक्लोप्रिड का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फरवरी, अगस्त व अक्टूबर के महीनों में छिड़काव करें। |
लीफ माइनर | पत्तियों में सफेद रंग की सर्प की आकृति की रेखाओं का बनना | प्रभावित पत्तियों को तोड़कर जला दें तथा 1.0-1.5 मिली. इमीडाक्लोप्रिड का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर या सक्सेस 0.5-1.0 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर मार्च, अप्रैल व जुलाई-अगस्त में छिड़काव करें। |
कैंकर | शाखाओं, पत्तियों व फलों पर भूरे रंग के धब्बे बनना व धीरे-धीरे शाखाओं का मरना | प्रभावित भागों को काटकर जलायें एवं 0.1 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन + 0.05 ग्राम कापर सल्फेट का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फरवरी, अक्टूबर व दिसम्बर में छिड़काव करें। |
फाइटोप्थोरा | जड़ों व त्वचा का सड़ना, गोंद निकलना, वृक्षों का मरना | तने को साफ रखें। गोंद को हटाने के बाद बोर्डो लेप लगायें। पौधों के चारों तरफ रिडोमिल एमजेड (2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी) या एलीर (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का घोल डालें। |
स्केब | पत्तियों, शाखाओं व फलों पर हल्के पीले रंग के उभार लिए धब्बों का बनना | कॉपर आक्सीक्लोरारइड (3.0 ग्राम प्रति लीटर पानी) का घोल जून से अगस्त के बीच 20 दिन के अंतराल पर छिड़कें। |
नींबू के फलों की तुड़ाई व भण्डारण
फलों का रंग हल्का पीला होने पर इनकी तुड़ाई करते रहना चाहिए । नींबू को सामान्य तापमान पर 8-10 दिन तक भण्डारित किया जा सकता है। नींबू के फलों को 9-10 डिग्री सेल्सियस तापमान व 85-90 प्रतिशत सापेक्षिक आर्द्रता पर 6-8 हफ्ते तक भण्डारित किया जा सकता है।
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