सहजन की खेती कैसे करे

मई से ले कर जुलाई तक का महीना खेती के नजरिए से काफी अहम होता है. इन महीनों में खेती के लिए नर्सरी तैयार करने से ले कर रोपाई और बोआई का काम किया जाता है, खरीफ सीजन के इन महीनों में अनाज, तिलहून, दलहन से ले कर फलसब्जियों की खेती और पौधों के रोपने का काम बड़े पैमाने पर किया जाता है

इस की एक बड़ी वजह यह भी है कि इसी दौरान देश के ज्यादातर हिस्सों में मानसून सक्रिय रहता है जिस से बारिश की दशा में फसल को सही नमी आसानी से मिल जाती है, फिर भी जहां पानी भरता हो, वहां सहजन की खेती करना सही नहीं है, इसी महीने में एक ऐसी ही बागवानी फसल की रोपाई का समय होता है जिस की अगर बड़े पैमाने पर खेती की जाए तो न केवल अच्छी आमदनी ली जा सकती है, बल्कि देश से कुपोषण की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

इस फसल का नाम है सहजन, इसे हम अलग अलग नामों से जानते हैं  इसे मोरिंगा, ड्रम स्टिक के नाम से भी जाना जाता है, इस के फल और पत्तियां दोनों का उपयोग कई तरह की बीमारियों को दूर करने में किया जाता हैं।

सहजन की खेती कैसे करे
सहजन की खेती कैसे करे

सहजन में उपलब्ध पोषक तत्वों के जरीए 300 से भी अधिक बीमारियों का इलाज किया जाता है। एक रिसर्च के मुताबिक, सहजन की फलियों और पत्तियों में दूध की तुलना में चौगुना पोटेशियम व संतरा की तुलना में 7 गुना विटामिन सी पाया जाता है, सहजन सब्जी के रूप में उपयोग होता है, वहीं इस की फली का सूप बहुत ही स्वादिष्ट होता है इस की छाल, पत्ती, बीज, जड़ वगैरह से तमाम तरह की दवाएं, पाउडर, कैप्सूल, तेल वगैरह तैयार किया जाता है ।

इस के पौधे सामान्य तापमान यानी 25-30 डिगरी सेंटीग्रेड में आसानी से उगाए जा सकते हैं, औसत तापमान पर सहजन के पौधों का काफी अच्छा विकास होता है. इस के पौधे ठंड को भी आसानी से सह सकते हैं, पर फूल आते समय 40 डिगरी से ज्यादा तापमान पर फुल झड़ने लगता है, कम या ज्यादा बरसात से पौधे को कोई नुकसान नहीं होता है, वह विभिन्न अवस्थाओं में उगने वाला पौधा है।

सहजन की उन्नत किस्में

सहजन की फसल सालभर में सिर्फ एक बार ही, वह भी कुछ ही महीने के लिए मिल पाती है, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसी प्रजातियों को ईजाद करने में कामयाबी पाई हैं, जो साल में 2 बार फसल देने में सक्षम हैं. इन प्रजातियों में रोहित 1, धनराज, केएम 1, केएम 2, पीकेएम-1 और पीकेएम-1 प्रमुख हैं ।

रोपाई के 4-6 महीने बाद ही सहजन की रोहित 1 प्रजाति के पौधे से पैदावार मिलनी शुरू हो जाती है. इस से 10 साल तक व्यावसायिक उपज ली जा सकती है. यह प्रजाति सानभर में 3 बार फसल देती है. इस की फलियां गहरे हरे रंग की होती हैं, वह क्वालिटी में बहुत अच्छी होती हैं यह प्रजाति अच्छी उपज देने वाली है।

सहजन के कोयंबटूर 2 प्रजाति में फलियों की लंबाई 25 से 35 सेंटीमीटर होती है. यह रंग में गहरा हरा और स्वादिष्ट होती है. पीकेएम-1 किस्म से साल में 2 बार उपज ली जा सकती हैजबकि पीएम 2 किस्म का कच्चा लिका रंग में हरा है और अच्छा स्वाद देता है, इस का भी उत्पादन अच्छा होता है।

सहजन की खेती के लिए नर्सरी तैयार करना

सबसे पहले नर्सरी तैयार करनी पड़ती है, नर्सरी के लिए पौली बैग में हलकी दोमट मिट्टी में गोबर की सड़ी खाद मिला कर भर देनी चाहिए. इस के बाद इस में सहजन के बीज को डाल कर नर्सरी के लिए बनाई गई क्यारियों में रख देना चाहिए।

नर्सरी में बीज के उचित जमाव के लिए बीज को पौली बैग में रोपने से पहले बीज के ऊपर से छिलके उतार लेते हैं और छिलके जाने के बाद इस की गुठलियों को रातभर पानी में भिगो देते हैं भिगोए हुए इन। बीजों को सुबह मिट्टी भरे गएपौली बैग में रोप देते हैं।

बीज को नर्सरी में डालने से पहले वीजशोधन कर लेना उचित होता है. इस के लिए दाईकोडर्मा या कार्बडाजिम कवकनाशी की 5 से 10 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए, इस तरह से बीजशोधन करने से अंकुरण अच्छ होता हैं और जड़ों में बीमारियों के लगने की संभावना कम हो जाती है।

सहजन की नर्सरी में बीजों के उचित जमाव और बड़वार के समय सही नमी बनाए रखना जरूरी होता है, सहजन की फसल लेने के। लिए इसे सीधे बिनानर्सरी में डाले ही बीज या कलम द्वारा खेतों में रोषा जा सकता है, लेकिन इस में पौधों के मरने का डर रहता है।

अगर फसल से अच्छी फलन और साल में बार फलन चाहते हैं तो चीज से नर्सरी तैयार करना ज्यादा मुफीद होता हैं. बीज से नर्सरी तैयार करने के लिए एक हेक्टेयर खेत में पौधों को रोपाई के लिए 2 किलोग्राम से 4 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है, अगर सहजन की खेती पशुओं के चारे के लिए की जा रही हैं तो इस के बीज को सीधे खेत में बोया जा सकता है, इस के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है।

सहजन की नर्सरी तैयार करने का सही समय फरवरी से मार्च माह तक का होता है नर्सरी में पीली वैग में तैयार किए गए पीथ एक महीने में लगाने लायक हो जाते हैं पीधे को रोपने से पहले पौली बैग के निचले हिस्से में छेद कर देना चाहिए, जिस से जड़े बाहर अच्छी तरह से निकल सकें।

सहजन की खेती के लिए सभी तरह की मिट्टी अच्छी होती हैं. इसे खाली पड़ी जमीनों, बंजर व कम उपजाऊ वाली जमीनों में भी आसानी से उगाया जा सकता है, फिर भी ज्यादा उत्पादन के लिए काली, लैटराइट, गहरी बलई, बलुई दोमट या दोमट मिट्टी ज्यादा उपज देने वाली होती है।

नर्सरी में तैयार सहजन के पौधों को खेत में रोषने से पहले जोत कर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए. खेत की अच्छी तैयारी के लिए एक गहरी जुताई करने के बाद हैरो या कल्टीवेटर से 2 से 3 गहरी जुताइयां कर देनी चाहिए. इस से सहजन की जड़ों का मिट्टी में फैलाव सही होता है। खेत से खरपतवारों को निकाल देना चाहिए, इस के बाद 2.5*2.5 मीटर की दूरी पर 45x45x45 सैंटीमीटर के आकार में गड्ढे खोद लेने चाहिए पौधों के उचित विकास को ध्यान में रखते हुए इन गड्ढों में मिट्टी के साथ गोबर की सडी खाद मिला कर भर देते हैं, गोबर की खाद को खेत में सीधे भी मिलाया जा सकता है ।

सहजन के पौधों की रोपाई

नर्सरी में तैयार सहजन के पौधों को रोपने का सब से मुफीद समय जून से सितंबर माह का होता है, सहजन के पौधों से पौधों की दूरी व लाइन से लाइन की दूरी 3 मीटर रखते हुए रोपाई करनी चाहिए,रोपे गए पौधे जब 75 सैंटीमीटर के हो जाएं तो इस के मुख्य कल्ले की कटिंग कर देनी चाहिए, इस से पौध में अधिक कल्ले निकल आते हैं।

खाद व उर्वरक

सहजन की फसल में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश, 30 किलोग्राम सल्फर और 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट की जरूरत होती है. बोआई से पहले 30 किलोग्राम नाइट्रोजन व बाकी उर्वरक की पूरी मात्रा को मिट्टी में मिला देना चाहिए. बची हुई नाइट्रोजन की आधी मात्रा बोआई के 30 दिन बाद वे बाकी बची । मात्रा 45 दिन बाद देनी चाहिए.

सिंचाई

खेत में पौधों की रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए. पहली सिंचाई के एक हफ्ते बाद दूसरी सिंचाई व बाकी सिंचाई हर 15 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए. फूल लगने के दौरान खेत ज्यादा सूखा नहीं रहना चाहिए या ज्यादा नमी रहने पर फूल के झड़ने की समस्या होती है।

खरपतवार नियंत्रण

सहजन की फसल में उगे खरपतवारों के नियंत्रण के लिए 1.25 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से पेंडीमिथेलिन का छिड़काव करना चाहिए. इस के अलावा 25 से 30 दिन के अंतराल पर गुड़ाई करने से खरपतवारों के नियंत्रण के साथ ही फसल की बढ़वार अच्छी होती है।

कीट

सहजन की फसल में आमतौर पर पत्तों को खाने वाली इल्लियां व बालदार इल्लियों का हमला होता है जो अकसर बारिश में फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं. ये इल्लियां सहजन की पत्तियों को खा कर नष्ट कर देती हैं, इन इल्लियों की रोकथाम के लिए घर पर तैयार किए गए जैव कीटनाशी या नीम तेल का छिड़काव कर नियंत्रण किया जा सकता है।

पशुओं के लिए हरा चारा

सहजन न केवल इनसानों के लिए, बल्कि दुधारू पशुओं के लिए भी फायदेमंद है और दूध बढ़ाने वाला है. यह अन्य चारा फसलों से कई गुना ज्यादा खूबियों वाला होता है. सहजन की पत्तियों और नरम तने का काटा गया चारा सूखे चारे के साथ मिला कर दिया जा सकता है सूखे की दशा में सहजन सहनशील व बहुवर्षीय चारा देने वाली फसल के तौर पर इस्तेमाल में लाया जा सकता है।

ऐसे लें उपज

साल में 2 बार फसल देने वाले सहजन की किस्मों की तुड़ाई आमतौर पर फरवरीमार्च और सितंबरअक्तूबर माह में होती है इस के अलावा उन्नत किस्म की प्रजातियों से फलियों और पत्तियों का अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है. साल में 2 बार फसल देने वाली प्रजातियां पीकेएम 1, पीकेएम 2, कोयंबटूर 1 व कोयंबटूर 2 में रोपाई के बाद 90-100 दिनों में इस में फूल आना शुरू हो जाता है जिस से पौधे लगाने के 160-170 पर फलियों की तुड़ाई की जा सकती है एक साल में एक पौधे से 65-70 सैंटीमीटर लंबा और औसतन 6.3 सैंटीमीटर मोटा, 200-400 फल 40-50 किलोग्राम की उपज मिलती है।

पोषण से भरपूर है सहजन

सहजन को दुनियाभर में कुपोषण को दूर करने में मुफीद माना जाता है, इस की वजह पत्तियों से ले कर फली तक में पोषक तत्त्व की प्रचुर मात्रा को जाता है । सहजन की पत्तियों से ले कर फली में अनाज, फल और सब्जियों से ज्यादा पोषक तत्त्व पाया जाता है, अगर इस का नियमित सेवन किया जाए तो बीमारियां हमें छू तक नहीं पाएंगी।

सहजन की पत्तियां, छाल, फलियां मधुमेह, गैस्ट्रिक, मलेरिया, अस्थमा, मिरगी, यौन संचारी रोग, अल्सर, मूत्र रोग, फंगल इंफैक्शन सहित सैकड़ों रोगों की रोकथाम में किया जा सकता है, पेशे से डायटीशियन डाक्टर रामभजन गुप्ता का कहना है कि सहजन एक ऐसा पौधा है, जो कई तरह के पोषक तत्वों को अकेले ही अपने में समेटे हुए है. इस की वजह से इसे कुपोषण को दूर करने में सब से ज्यादा मुफीद माना जाता है,

उन्होंने आगे बताया कि साल 1985 में डाक्टर मार्टिन एल प्राइस द्वारा किए गए शोध में सहजन में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की पहचान और उन की मात्रा की खोज की गई. इसे दी गई तालिका में दर्शाया गया है, डाक्टर रामभजन गुप्ता के मुताबिक, अगर हम प्रतिदिन इस की पत्तियों का चूर्ण बना कर प्रयोग करें तो बीमारियां होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं।

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