आरोग्य वाटिका

आरोग्य वाटिका : गांवों में घर के पीछे के हिस्से में या कभी-कभी घर के आगे काफी भूमि खाली होती है इस भूमि का उपयोग अक्सर महिलायें गृहवाटिका बनाकर उसमें सब्जी-फल के पौधे लगाकर करती है, इससे ताजा व शुद्व फल-सब्जी सदैव उपलब्ध होते है। यह न केवल पौष्टिक भोजन उपलब्ध होने का अच्छा उपाय है वरन् घर खर्च में भी बचत होती है। इसी गृहवाटिका में यदि कुछ जड़ी-बूटियाँ (औषधीय पौधे) भी लगा दिये जायें और इनका समय-समय पर उपयोग भी होता रहे तो इससे न केवल शरीर में रोगरोधक क्षमता का विकास होता है वरन् रोग होने पर ठीक भी जल्दी हो जाता है। यह बात इसलिये भी महत्वपूर्ण है कि गांवों में चिकित्सा साधनों के लिये दूरियाँ होती है और कृषि कार्य को छोड़कर मरीज की सेवा में लगना पड़ता है। कुछ सामान्य रोग जैसे खॉसी-जुकाम, बुखार, चर्मरोग, उदर रोग प्रारम्भिक अवस्था में ही परहेज व सामान्य औषधीय पौधों के उपयोग से ठीक हो जाते है। रोग की गम्भीरता के अनुसार चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लेना चाहिए। इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए कुछ औषधीय पौधों का विवरण इस पत्रक में दिया जा रहा है। यह जानकारी अनुभवों व पारंपरिक ज्ञान पर आधारित है।

इनमें से कुछ पौधे पशुओं को स्वाद में अच्छे नहीं लगते है अतः इन्हे आरोग्य वाटिका की बाड़ (मेढ़) के रूप में चारों और लगाया जा सकता है ये पौधे है अडूसा, ग्वारपाठा, अश्वगंधा तथा तुलसी तथा नीम, गिलोय, आँवला, शतावर को पशु कम पसन्द करते है। इन सभी पौधों के पत्तों को पीसकर व 5 गुना पानी मिलाकर शाक वाटिका के पौधों पर छिड़कने से कई कीट-रोगों का प्रकोप नहीं होता है। इन्ही कुछ आसानी से लगाये जाने वाले औषधीय पौधों का विवरण निम्न प्रकार है:

तुलसी

झाड़ीनुमा पौधा, बीज से नया पौधा बनता है। इसके असंख्य औषधीय गुणों के कारण अत्यन्त उपयोगी हैपर्यावरण सुधारक पौधा हैं।

प्रयोग:
तुलसी की 2-5 पत्तियाँ पानी या दूध के साथ सेवन से खाँसी-जुकाम, बुखार, उच्च रक्तचाप (बी.पी.) में लाभ होता है।

अडूसा

झाड़ीनुमा-बड़े पत्ते वाला पौधा, सफेद पुष्प, इसे कलम से लगाया जा सकता है।

प्रयोग:
अडूसे के चार पत्तों को आधा लीटर पानी में 10-15 मिनट तक उबाल कर छान लें। ठण्डा होने पर दो चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार पीने से पुराना कफ-खाँसी व दमा में लाभ होता है।

ग्वारपाठा

इसका वानस्पतिक नाम एलोवेरा है तथा यही इसका प्रचलित नाम है। छोटा पौधा होता हैं व इसकी माँसल पत्तियाँ ही मुख्यरूप से उपयोगी भाग है। मातृ पौधे के पास से निकले शिशु पौधों से ही इसका नया पौधा बनता है।

प्रयोग: पत्ती का 8-10 से.मी. के टुकडे से गूदा निकालकर प्रतिदिन सेवन से मधुमेह व उदर रोग संबंधी रोगों में लाभ मिलता है। साथ ही शरीर से अंवाछित पदार्थ भी बाहर निकलते है। जल जाने पर इसका गूदा लगाने से शीघ्र लाभ होता है।

गिलोय

इसे नीम गिलोय या अमृता भी कहते है। यह एक पान के जैसे पत्तों वाली बेल है तथा तने के टुकड़े से नया पौधा बनता है।

प्रयोगः
तने का 6 इंच का टुकड़ा कूटकर एक लीटर पानी में 10-15 मिनट उबालकर छान लें। इस पानी के दिन में कई बार सेवन से ज्वर, मधुमेह, यकृत, गुर्दा रोग में लाभ होता है।

नीम

यह एक वृक्ष है। बीज द्वारा पौधा लगाया जाता है। इसे मौहल्लें के बगीचे में लगाना चाहिये व गिलोय की बेल को इसके साथ लगाना चाहिये।

प्रयोग:
इसकी छाल घिसकर चर्म रोगों में, टहनी से दाँतो की सफाई, 4-5 कोमल लाल पत्तियों को प्रातःकाल सेवन मधुमेह, ज्वर, उदर रोग में उपयोगी हैं। सूखी पत्तियों का घुआँ मच्छर भगाने में भी उपयोगी है। नीमोली का पाउडर/नीम खल बगीचे की भूमि में मिलाने से दीमक व चींटीयों से बचाव होता है।

आँवला

यह एक वृक्ष है तथा इसका प्रवर्धन बीज व कलम द्वारा होता है
प्रयोग: आँवले के फल का रस का सेवन करने से शरीर में रोगरोधक क्षमता बढ़ती है यह नेत्र, मस्तिष्क, हृदय आदि अंगों को सुचारू रूप से कार्य करने में सहायक होता है।

पुदिना

एक सुगन्धीय पौधे के रूप में जाना जाता है। इसका प्रसारण भूप्रसारी शाखाओं के द्वारा होता है। इसके पत्तों का औषधी के लिये प्रयोग किया जाता है।

प्रयोग: पुदिना के पत्तों को पीसकर सेवन करने से अतिसार (दस्त) में आराम मिलता है।

अनार

यह पौधा प्रायः सभी फल वाटिकाओं में लगाया जाता हैप्रसारण बीज व कलम से होता है। उपयोगी अंग जड़ की छाल, फल का छिलका व फल का रस है। एक अनार से सौ बीमारी ठीक होने की कहावत में बहुत हद तक सच्चाई है।

प्रयोग: जड़ की छाल को जल में उबालकर दिन में 4-6 बार पीने से फीता कृमि नष्ट होकर बाहर निकल जाते है। फल का रस रक्त में हिमोग्लोबीन बढ़ाता है। हृदय रोग में भी लाभकारी है। फल के छिलके का काढ़ा अतिसार, आँव आदि उदर रोगों में आराम पहुँचाता है।

शतावर

यह एक काँटेदार बेल है सुन्दर बेल होने के कारण इसे कई घरों में गमले में भी लगाया जाता है। इसका प्रवर्धन बीज द्वारा होता है। इसका उपयोगी भाग जड़ है। वर्षा के बाद अक्टूबर-नवम्बर में इसके पत्ते झड़ जाते है तथा बीज बन जाते है इसके बाद जड़ निकालकर उपयोग करना चाहिए।

प्रयोग: सामान्य कमजोरी, थकान में उपयोगी है। यह महिलाओं के लिये विशेष औषधी है, जो उनके सम्पूर्ण जीवन में उपयोगी हैइसकी जड़ के पाऊडर का दूध के साथ सेवन किया जा सकता है।

अश्वगंधा

यह झाड़ीनुमा पौधा है तथा वर्षाकाल में बीज से प्रवर्धन होता है। इसका मुख्य उपयोगी भाग जड़ है जिसको अक्टूबर-नवम्बर के बाद पत्ते झड़ने पर पौधा उखाड़ कर जड़ अलग कर उपयोग किया जाता है।

प्रयोग: जड़ का पाऊडर दूध के साथ सेवन करने से थकान, कमजोरी व जोड़ों का दर्द में लाभ होता है। अश्वगंधा व शतावर जड़ का पाऊडर समान भाग मे दूध के साथ लेने से अधिक लाभ होता है। अश्वगंधा के पत्ते को फोड़े-फुसी पर लगाने से लाभ मिलता है।

निम्न दो औषधियों जिनकों शाक वाटिका में लगाने की आवश्यकता नहीं है ये खरपतावर के रूप में उगती हैं। अतः फूल आने पर इन्हे जड़ सहित उखाड़कर चूर्ण बनाकर उपयोग करना चाहिए।

पुनर्नवा

यह यकृत, गुर्दे, उदर रोग में काफी उपयोगी औषधी है।

भूमी आँवला

छोटे कद का शाकीय पौधा जिसकी पत्तियाँ इमली के पत्ते के समान व शिरा के पृष्ठ भाग में राई के आकार के आँवले जैसे फल लगे रहते है।

प्रयोग: पीलिया रोग में इस पौधे के पंचाग का रस दिन में 5-6 बार 2-2 चम्मच लेने से बहुत आराम मिलता है। मलेरिया ज्वर व मूत्र विकारों मे पंचाग का काढ़ा पीने से लाभ होता है।

नोट:
1. औषधीयों का लगातार सेवन करने से शरीर उन्हें भोजन मानने लगता है अर्थात असर कम हो जाता है अतः 10-15 दिन प्रयोग के बाद एक सप्ताह के अन्तराल (ब्रेक) देकर पुनः सेवन करना चाहिए।

2. उपरोक्त सभी औषधियाँ शरीर की रोग से लड़ने की ताकत (रोग प्रतिरोधक क्षमता) बढ़ाती हैं तथा रोग की गंभीरता के आधार पर चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लेना चाहिये।

इस प्रकार गृह वाटिका में कुछ औषधीय पौधे लगाने से कई रोगों की प्राथमिक चिकित्सा और कई रोगों को ठीक करने में सहायता मिल सकती है।

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