गेहूँ : गेहूँ हमारे राज्य की एक प्रमुख रबी फसल है। इसकी खेती हमारे यहाँ करीब 22 लाख हेक्टेयर में की जाती है। वैसे तो हमारे यहाँ की मिट्टी एवं जलवायु गेहूँ उत्पादन हेतु काफी उपयुक्त है, लेकिन देरी से धान की कटायी सम्पन्न होने के कारण गेहूँ की बोआई में देर होने से इसकी उपज में कमी आ जाती है। हमारे यहॉ गेहूँ की खेती विभिन्न परिस्थितियो में की जाती है:- असिंचित अवस्था में बुआई, सिंचित अवस्था में समय से बोआई, सिंचित अवस्था में विलम्ब से बोआई, जीरो टीलजे एवं सतही बोआई।
भूमि का चुनाव: गेहूँ की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टियो में की जा सकती है, परन्तु दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिये सर्वोत्तम होती है। रेतीली मिट्टी जिसमें पानी रोकने की क्षमता एवं कार्बनिक जीवांष की मात्रा कम हो, इसकी खेती के लिये अच्छी नही होती है। उसर भूमि में गेहूँ की खेती सिंचित अवस्था में केवल अनुशंसित किस्मो का ही प्रयोग कर संभव है। अच्छी उपज के लिये भूमि अम्लीय या क्षारीय नहीं होना चाहिए।
खेत की तैयारी: खेत की जुताई कम से कम तीन से चार बार करनी चाहिए। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और बाद में डिस्क हैरो या देशी हल से खेत की जुताई करनी चाहिए। हर जुताई के बाद पाटा दने से मिट्टी मुलायम एवं भूरभूरी तथा भूमि में नमी का संरक्षण अधिक होता है जो बीज के अच्छे अंकुरण के लिये आवश्यक है।
गेहॅूँं की बुआई के लिये सर्वोत्तम तापमान 21 से 25 डिग्री सेन्टीग्रेड होता है। ऐसा उपयुक्त तापक्रम बिहार में 15 से 20 नवम्बर के बाद ही आता है। नवम्बर माह में जब मुँह से भाप आने लगे तो गेहॅूँं की बुआई के लिए उपयुक्त समय माना गया है।
विभिन्न परिस्थितियों में उपयुक्त उन्नत प्रभेद, बीज दर एवं बुआई समयः-
परिस्थिति | प्रभेद | समय | परिपक्वता अवधि (दिन) |
उपज क्षमता (क्वि0/हे0) | बीज दर (कि0ग्रा0/हे0) | कतार से कतार की दूरी (से0मी0) |
असिंचित | सी. 306, के. 8027, आर. डब्लू. 3016, के. 8962, एच. डी.2888, के. 8027, |
15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक | 135-140 | 25-30 | 125 | 23 |
सिंचित (समय पर बुआई) |
के. 9107, के. 9006, के. 307, पी. बी. डब्लू. 343, पी.बी. डब्लू. 443, के. 8804 एच.डी. 2733, एच.यू. डब्लू. 468, एच.पी. 1731, एच.पी.1761, एच. डी. 2824, एच. डी. 2967 एच. डी. 2985 |
15 नवम्बर से 10 दिसम्बर | 125-130 | 40-50 | 125 | 20 |
सिंचित (विलम्ब से बुआई) |
पी.बी.डब्लू. 373, एच.डी. 2285, एच.डी. 2307, एच.डी. 2329, एच.डी. 2643, एन. डब्लू. 1014, एन. डब्लू.2036, एच. डब्लू. 2045 एच.य. डब्लू. 234, एच.पी. 1744, राज 3765, डी.बी. डब्लू. 14 |
10 दिसम्बर से दिसम्बर अन्त तक | 110-115 | 30-40 | 150 | 18 |
बीजोपचारः बुआई के पूर्व बीज की अंकुरण क्षमता की जॉच अवश्य कर लेनी चाहिए। बीज यदि उपचारित नहीं है तो बुआई से पूर्व बीज को फफूदं नाशक दवा वीटावैक्स या वैविस्टीन 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से अवश्य उपचारित करें।
उर्वरक की मात्रा एवं प्रयोग विधि:
समय | उर्वरक की मात्रा एन. पी. के./हे. | प्रयोग विधि |
सिंचित (समय पर बुआई) |
120:60:40 | नाइट्रोजन की आधी तथा स्फुर और पोटाश की पूरी मात्रा अर्थात 130 कि0ग्रा0 डी0ए0पी0,80 कि0ग्रा0 यूरिया एवं 67 कि0ग्रा0 म्यूरेट ऑफ पोटाश मिलाकर अंतिम जुताई के पहले खेत में अच्छी तरह से मिला दें। नत्रे जन की बची मात्रा अर्थात 130 कि0ग्रा0 यूरिया को दो बराबर भागों में प्रथम एवं द्वितीय सिंचाई के बाद उपरिवेशित करें। |
सिंचित (विलम्ब से बुआई) |
80:40:20 | नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस एवं पोटश की पूरी मात्रा अर्थात 87 कि0ग्रा0 डी0ए0पी0, 55 कि0ग्रा0 यूरिया एवं 33 कि0ग्रा0 म्यूरेट ऑफ पोटाश अंतिम जुताई के समय दें तथा नेत्रजन की शेष बची मात्रा अर्थात 87 कि0ग्रा0 यूरिया प्रथम सिंचाई के समय उपरिवेशित करें। |
असिंचित | 40:30:20 | नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय खेत में छिड़काव कर दें। वर्षा होने पर खड़ी फसल में 20 कि0ग्रा0 नेत्रजन अर्थात 45 कि0ग्रा0 यूरिया प्रति हेक्टर की दर से उपरिवेशन करें। |
सिंचाई एवं जल प्रबंधन:- अच्छी पैदावार के लिये आवश्यक है कि समय पर फसल की सिंचाई की जाय। आमतौर पर हमारे यहॉं 3-4 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। गेहॅूँं में हमेशा हल्की सिंचाई करनी चाहिए ताकि खेत में 6-8 घंटों बाद पानी दिखलायी न पड़े। अन्यथा अधिक जलजमाव से पौधे पीले पड़ जायेंगे तथा उसमें श्वसन की क्रिया अस्थायी रूप से रूक जायेगी। सिंचाई जल की उपलब्धता के आधार पर निम्न क्रांन्तिक अवस्थाओं पर सिंचाई करनी चाहिए:-
सिंचाई जल की उपलब्धता | फसल की क्रांन्तिक अवस्था | बोआई के कितने दिनों बाद |
एक सिंचाई | शीर्ष जड़ें (का्रउन रूट) निकलने के समय | 20-25 दिनों बाद। |
दो सिंचाई | शीर्ष जड़ें (का्रउन रूट) निकलने के समय तथा बाली निकलते समय | 20 से 25दिनों एवं 80-85 दिनों बाद। |
तीन सिंचाई | शीर्ष जड़ें (का्रउन रूट) निकलने के समय, गाभा अवस्था में तथा दानों में दूध भरते समय | 20-25, 65-70 तथा 90-100 दिनों बाद। |
चार सिंचाई | शीर्ष जड़ें (का्रउन रूट) निकलने के समय, कल्ले निकलने की अंतिम अवस्था में, गाभा के समय और दानों में दूध भरते समय । | 20-25, 40-45 , 65-70 तथा 90-100 दिनों बाद। |
नोट: फसल में बाली निकलने के बाद तजे हवा चलने की स्थिति में सिंचाई न करें।
निकाई-गुडाई एवं खरपतवार नियंत्रण: गेहूँ की फसल में खरपतवार के कारण उपज में 10 से 40 प्रतिशत तक की कमी हेा जाती है। अतः खरपतवारों का नियंत्रण नितांत आवश्यक है। गेहूँ की बुआई के 25-30 दिन बाद अथवा प्रथम सिंचाई के पश्चात् हैण्ड हो द्वारा निकाई कर घास पात निकालने से उपज पर अच्छा प्रभाव देखा गया है। इसके अलावा रासायनों द्वारा खरपतवार नियंत्रण की अवस्था में खेत में पर्याप्त नमी का होना काफी महत्वपूर्ण होता है तथा रासायनों का प्रयोग आर्थिक दृष्टि से अपेक्षाकृत कम खर्चीला है।
कटनी -दौनी: फसल पकते ही सुबह में कटाई करें तथा कटायी के उपरांत जल्द ही दौनी कर बीज को अलग करें।
भंडारण: भंडार में रखने से पूर्व बीज को अच्छी तरह धूप में सुखा लें तथा बीज हेतु रखी जाने वाली किस्मों में दवा मिलाकर संचयन करें।
गेंहूँ के प्रमुख कीट एवं रोग तथा प्रबंधन
दीमक Termite Odontotermes obesus |
दीमक मिट्टी में रहने वाले भूरे रगं के छोटे आकार के कीट हैं। यह गेहूँ के छोटे-छोटे जड़ो को काटकर नुकसान पहुँचाता है, जिसके कारण पौधे मर जाते हैं। आक्रान्त पौधों को उखाड़ने पर तने में मिट्टी लगी पायी जाती है। प्रबंधन खेत की गी्रष्मकालीन जुताई करें। खेत को खर-पतवार से मुक्त रखें । सड़ी गोबर के खाद का ही व्यवहार करें। क्लोरपाइरीफास 20 ई0सी0 का 2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। |
माहू (लाही) Aphid Diuraphis noxia |
यह कीट काले, हरे भूरे रगं के पंखयुक्त एवं पंखविहीन होते हैं। इसके शिशु एवं वयस्क पतियों फूलों तथा बाली से रस चूसते हैं, जिसके कारण फसल को काफी क्षति होती है। कीट मधुश्राव भी बाधित होती है। यह कीट समूह में पाये जाते हैं। प्रबंधन फसल की बुआई समय पर करें। खेत में पीले रगं के टिन के चदरे पर चिपचिपा पदार्थ लगाकर लकड़ी के सहारे खेत में गाड़ दें। उड़ते लाही इसमें चिपक जायेंगें। आक्सीडेमेटान मिथाईल 25 ई0सी0 या फेनभेलरटे 20 ई0सी0 का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें। |
भूरा हरदा Brown rust Puccinia sp. |
भूरे रंग के बिखरे हुए धब्बे पत्तियों और तनों पर पाये जाते हैं। प्रबंधन फसल चक्र अपनायं । रोग-रोधी किस्म को लगायें। छिड़काव करें। टबेुकानेाजाले 25.9 ई0सी0 1 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें। |
पीला हरदा Yellow rust |
सर्वप्रथम पत्तियों पर रेखीय सजावट में पीले रगं के छोटे-छोटे धब्बे बनते हैं, जिसे छूने पर हाथ में लग जाते हैं। प्रबंधन फसल चक्र अपनायें। रोग-रोधी किस्म को लगाये। छिड़काव करें। टबेुकानेाजाले 25.9 ई0सी0 1 मिलीलीटर प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें। |
ये भी देखें:
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