पशुओं में लू लगने के लक्षण एवं उससे बचाव

पशुओं में लू लगने के लक्षण एवं उससे बचाव: गर्मी के मौसम में जब बाहरी वातावरण का तापमान अधिक हो जाता है तो वैसी स्थिति में पशु को उच्च तापमान पर ज्यादा देर तक रखने से या गर्म हवा के झोंकों के संपर्क में आने पर लू लगने का डर अधिक होता है जिसे हिट स्ट्रोक अथवा सन स्ट्रोक कहते हैं।

गर्मी के मौसम में दुग्ध उत्पादन एवं पशु की शारीरिक क्षमता बनाये रखने की दृष्टि से पशु आहार का भी महत्वपूर्ण योगदान है।गर्मी में पशुपालन करते समय पशुओं को हरे चारे की अधिक मात्रा उपलब्ध कराना चाहिए. इसके दो लाभ हैं, एक पशु अधिक चाव से स्वादिष्ट एवं पौष्टिक चारा खाकर अपनी उदरपूर्ति करता है, तथा दूसरा हरे चारे में 70-90 प्रतिशत तक पानी की मात्रा होती है, जो समय-समय पर जल की पूर्ति करता है।

पशुओं में लू लगने के लक्षण एवं उससे बचाव
पशुओं में लू लगने के लक्षण एवं उससे बचाव

प्राय: गर्मी में मौसम में हरे चारे का अभाव रहता है. इसलिए पशुपालक को चाहिए कि गर्मी के मौसम में हरे चारे के लिए मार्च, अप्रैल माह में मूंग , मक्का, काऊपी, बरबटी आदि की बुवाई कर दें जिससे गर्मी के मौसम में पशुओं को हरा चारा उपलब्ध हो सके, ऐसे पशुपालन जिनके पास सिंचित भूमि नहीं है, उन्हें समय से पहले हरी घास काटकर एवं सुखाकर तैयार कर लेना चाहिए. यह घास प्रोटीन युक्त, हल्की व पौष्टिक होती है। गर्मी के दिनों में पशुओं के चारे में एमिनो पावर (Amino Power) और ग्रो बी-प्लेक्स (Grow B-Plex) मिलाकर देना लाभदायक रहता है।

गर्मी के मौसम में पशुपालकों को अपने पशुओं को सुरक्षित रखने के लिए भी सावधान रहने की आवश्यकता होती है। गर्मियों के मौसम में चलने वाली गर्म हवाएं (लू) जिस तरह हमें नुकसान पहुंचती हैं ठीक उसी तरह ये हवाएं पशुओं को भी बीमार कर देती हैं। अगर पशुपालक उन लक्षणों को पहचान लें तो वह अपने पशुओं का सही समय पर उपचार कर उन्हें बचा सकते हैं।

पशुओं में लू लगने के लक्षण

  1. तीव्र ज्वर की स्थिति
  2. मुंह खोलकर जोर जोर से सांस लेना अर्थात हांफना।
  3. मुंह से लार गिरना।
  4. क्रियाशीलता कम हो जाना एवं बेचैनी की स्थिति।
  5. भूख में कमी एवं पानी अधिक पीना।
  6. पेशाब कम होना अथवा बंद हो जाना।
  7. धड़कन तेज होना।
  8. कभी कभी अफरा की शिकायत होना आदि।

पशुओं में लू से बचाव के उपाय

  1. पशुओं को धूप एवं लू से बचाव हेतु पशुओं को हवादार पशुगृह अथवा छायादार वृक्ष के नीचे रखें जहां सूर्य की सीधी किरणें पशुओं पर न पड़े।
  2. पशुगृह को ठंढ़ा रखने हेतु दीवारों के उपर जूट की टाट लटका कर उसपर थोड़ी-थोड़ी देर पर पानी का छिड़काव करना चाहिए ताकि बाहर से आने वाली हवा में ठंढक बनी रहे।
  3. पंखे अथवा कूलर का यथासंभव उपयोग करें।
  4. पशुओं में पानी एवं लवण की कमी हो जाती है। साथ ही भोजन में अरूची हो जाती है। इन्हें ध्यान में रखकर दिन में कम से कम चार बार साफ, स्वच्छ एवं ठंढा जल उपलब्ध कराना चाहिये। साथ ही संतुलित आहार के साथ-साथ उचित मात्रा में खनिज मिश्रण देना चाहिये।
  5. पशुओं खासकर भैंस को दिन में दो-तीन बार नहाना चाहिए।
  6. आहार में संतुलन हेतु एजोला घास का उपयोग किया जा सकता है। साथ ही आहार में गेहूं का चोकर एवं जौ की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए।
  7. पशुओं को चराई के लिए सुबह जल्दी एवं शाम में देर से भेजना चाहिए।
  8. गर्मियों के मौसम में पैदा की गयी ज्वार में जहरीला पदर्थ हो सकता है जो पशुओं के लिए हानिकारक होता है । अतः इस मौसम में यदि बारिश नहीं हुई है तो ज्वार खिलाने के पहले खेत में २-३ बार पानी लगाने के बाद ही ज्वार चरी खिलाना चहिये।

पशुओं में लू लगने के उपचार

  1. सर्वप्रथम शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए पशु को ठंडे स्थान पर रखना चाहिए।
  2. पशु को पानी से भरे गढ्ढे में रखना चाहिए अथवा पूरे शरीर पर ठंडे पानी का छिड़काव करना चाहिए। सम्भव हो तो बर्फ या अल्कोहल पशुओं के शरीर पर रगड़ना चाहिए।
  3. ठंडे पानी में तैयार किया हुआ चीनी, भुने हुए जौ का आटा व थोड़ा नमक का घोल बराबर पिलाते रहना चाहिए।
  4. पशु को पुदीना व प्याज का अर्क बनाकर देना चाहिए। शरीर के तापमान को कम करने वाली औषधी का प्रयोग करना चाहिए।
  5. शरीर में पानी एवं लवणों की कमी को पूरा करने के लिए इलेक्ट्रोलाइट थेरेपी करना चाहिए।
  6. विषम परिस्थिति में नजदीकी पशु चिकित्सालय से संपर्क करना चाहिए।

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