क्या करें जब पुलिस F I R करने से मना कर दे । F I R information in hindi

एफ आई आर (F I R) का पुल फार्म – First information report है । इसे हिन्दी में प्रथम सूचना रिपोर्ट या प्राथमिकी कहा जाता है । प्राथमिकी संज्ञेय (Congisable ) अपराधों के लिए दर्ज की जाती है। देश द्रोह , घातक हथियारों से आक्रमण , रिश्वत का मामला , हत्या , बलात्कार , गोली चलाना , आगजनी और अन्य गैर कानूनी गतिविधियों के लिए प्राथमिकी हीं दर्ज की जाती है । इसी तरह से हाथा पायी , छोटे मोटे झगड़े और मार पीट असंज्ञेय (Non Congisable) अपराध की श्रेणी में आते हैं । असंज्ञेय आपराधिक मामलों में प्राथमिकी दर्ज नहीं होती है , बल्कि एन सी आर(Non Congisable Report ) कटती है ।

एन सी आर काटने के बाद थाना प्रभारी मजिस्ट्रेट के सम्मुख इस केस को रखता है , जिस पर मजिस्ट्रेट अपना जजमेंट देता है । एक रोजनामचा भी होता है , जिसे डेली डायरी कहा जाता है । बहुत से लोग डेली डायरी और प्राथमिकी में अंतर नहीं जानते । वे सोच लेते हैं कि उनकी तरफ से प्राथमिकी दर्ज हो गयी । डेली डायरी पुलिस मेंटेन करती है , जबकि प्राथमिकी शिकायत कर्ता की तरफ से की जाती है । इस पर शिकायत कर्ता के हस्ताक्षर होते हैं ।

F I R information in hindi
F I R information in hindi

प्राथमिकी (F I R) कम से कम शब्दों में और सभी सूचनाओं को आत्सात किया हुआ होना चाहिए । भाषा सरल , सुबोध और सुगम्य होनी चाहिए । इसमें क्लिष्ट शब्दों की भरमार नहीं होनी चाहिए । प्राथमिकी दर्ज करते समय 9 बातों का ख्याल जरुर करना चाहिए –

1) घटना का समय और तारीख
2) घटना कहां हुई ?
3) अपराध किसने किया ?
4) अपराध किसके साथ किया गया ?
5) अपराध का कारण क्या था ?
6) अपराध किसके सामने किया गया ?
7) यदि कोई हथियार प्रयुक्त किया गया हो तो उसका जिक्र ।
8)अपराध प्रकरण क्या था ?
9) अपराध के बाद की स्थिति क्या थी ?

यदि उपरोक्त विन्दुओं को आपने अपनी प्राथमिकी में दर्ज किया है तो यह प्राथमिकी उत्तम प्रकृति की होगी , जिस पर वकील को जिरह करने और जज को फैसला सुनाने में आसानी होगी । बाज दफा थाना प्रभारी हीं प्राथमिकी लिखता है और शिकायतकर्ता से उस पर हस्ताक्षर कराता है । यदि प्राथमिकी शिकायतकर्ता के मन मुताबिक न हो तो वह उस प्राथमिकी पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर सकता है । शिकायतकर्ता इसकी शिकायत CRPC- 156(3) के अंतर्गत मजिस्ट्रेट से कर सकता है । संविधान के अनुच्छेद – 226 के अंतर्गत हाई कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकता है । यदि पुलिस सभी वांछित धाराएं नहीं लगाती है तो अदालत में इस बावत कम्पलेंट की जा सकती है ।

प्राथमिकी (F I R) दर्ज करवाने की कोई फीस नहीं होती । यदि कोई फीस का मांग करता है तो इसकी सूचना पुलिस के बड़े अधिकारियों की दी जा सकती है । प्राथमिकी तुरंत दर्ज करवानी चाहिए । यदि किसी कारणवश देर हो गयी हो तो उस देरी का कारण प्राथमिकी में अवश्य उल्लेख करना चाहिए । यदि आप शिकायत मौखिक रुप से दे रहे हैं तो उस हालत में थाना प्रभारी स्वंय प्राथमिकी लिखेगा और आपको अच्छी तरह से समझाएगा कि प्राथमिकी में क्या लिखा गया है । शिकायत की चार काॅपियां होनी चाहिए । इनमें से एक काॅपी आपको भी मुहैय्या करायी जाएगी । प्राथमिकी पर थाना प्रभारी के हस्ताक्षर और मुहर की जांच अवश्य कर लेना चाहिए । आप प्राथमिकी आॅन लाइन भी भेज सकते हैं । आॅन लाइन शिकायत में आपका ई – मेल पता और फोन नम्बर अवश्य लिखा होना चाहिए । शिकायत भेजने के 24 घंटे के भीतर थाना प्रभारी आपको फोन करेगा । आपकी शिकायत पर हो रही कार्यवाही की सूचना समय समय पर आपके ई मेल पते पर भेजी जाती रहेगी ।

कई बार थाना प्रभारी प्राथमिकी दर्ज करने के लिए आना कानी करते हैं । इसके दो प्रमुख कारण हैं । पहला कारण है कि ऐसा करने से उनके अपने इलाके का क्राइम रेट कम होगी । उन्हें इस बात के लिए पुरस्कृत भी किया जा सकता है । इस बात की प्रबल सम्भावना रहेगी कि उनकी गोपनीय रिपोर्ट अच्छी लिखी जाए । दूसरा कारण यह है कि थाना प्रभारी को कथित शिकायत की सत्यता पर विश्वास नहीं होता है । लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार किसी भी हालत में थाना प्रभारी प्राथमिकी दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकता है । यदि उसे शिकायत की सत्यता पर शक सुबहा है तो वह पहले प्राथमिकी दर्ज करेगा फिर उस शिकायत की सत्यता की जांच करेगा । ऐसा न होने पर सर्वोच्च न्यायालय ने थाना प्रभारी के खिलाफ कार्यवाही करने का भी प्राविधान रखा है ।

सर्वोच्च न्यायालय ने प्राथमिकी (F I R) दर्ज होने के एक सप्ताह के अंदर अंदर प्राथमिक जांच पूरी कर लेने का निर्देश भी दिया है । यदि थाना प्रभारी प्राथमिकी दर्ज करने से इंकार करता है तो आप उस हालत में अपनी प्राथमिकी को रजिस्टर्ड डाक के मार्फत पुलिस उपायुक्त को भेज सकते हैं । पुलिस उपायुक्त इस प्राथमिकी का स्वतःसंज्ञान लेते हुए थाना प्रभारी को उचित कार्यवाही हेतु कहेगा । यदि इससे भी आप सफल न हुए तो मजिस्ट्रेट के दफ्तर में कम्पलेंट पीटीसन दाखिल कर सकते हैं । ऐसी हालत में मजिस्ट्रेट 24 घंटे के भीतर प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देगा । आपको प्राथमिकी की एक काॅपी मुहैय्या करायी जाएगी । अब कार्यवाही करना थाना प्रभारी के लिए आवश्यक और अपरिहार्य हो जाएगा , अन्यथा उस पर दण्डात्मक कार्यवाही की जा सकती है । उसे जेल भी भेजा जा सकता है ।

CRPC- 154 के तहत संज्ञेय मामलों में प्राथमिकी (F I R) दर्ज कराना आपका मौलिक अधिकार है । वैसे असंज्ञेय मामलों में भी एन सी आर काटने का प्राविधान है । इन अधिकारों से आपको कोई भी किसी तरह महरुम नहीं कर सकता ।

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