महाराजा अग्रसेन : एक जीवन परिचय

आज से तकरीबन 5 हज़ार वर्ष पूर्व सूर्यवंशीय क्षत्रिय राम की वंश परम्परा के 34 वीं पीढ़ी में महाराज अग्रसेन का जन्म हुआ था इनके पिता का नाम बल्लभसेन और माता का नाम भगवती था। ये ज्येष्ठ पुत्र थे। इसलिए महाराज बल्लभ सेन इनको सत्ता सौंप स्वयं वानप्रस्थी हो गए थे।

नागराज की कन्या माधवी के स्वयम्बर में महाराज अग्रसेन भी आमन्त्रित थे।माधवी के रूप गुण पर मुग्ध हो देवताओं के राजा इंद्र स्वयं भी स्वयम्बर में उपस्थित हुए थे , पर माधवी ने वरमाला महाराजा अग्रसेन को हीं पहनाई। यह दो संस्कृतियों ,सम्प्रदायों और जातियों का अद्भुत मेल था। यह देख इंद्र बहुत कुपित हुए। उन्होंने पृथ्वी पर बारिश रोक दी। चारों तरफ त्राहि त्राहि मच गई। महाराज अग्रसेन ने भगवान् शिव की सलाह पर लक्ष्मी का आवाह्न किया। लक्ष्मी ने उन्हें राजधानी प्रताप पुर की बजाय कहीं अन्यत्र स्थान्तरित करने और क्षत्रिय कर्म को छोड़कर वाणिक (व्यवसाय ) कर्म करने की सलाह दी।

महाराजा अग्रसेन
महाराजा अग्रसेन

महाराजा अग्रसेन अपनी पत्नी माधवी के साथ पूरे भारत वर्ष में घूमें ताकि नई राजधानी हेतु स्थान का चयन हो सके। एक जगह उन्हें शेर व भेड़िया के बच्चे एक साथ खेलते हुए नज़र आए। उन्हें यह जगह जँच गई। महाराज अग्रसेन ने उस स्थान पर नई राजधानी बनाई। उस स्थान का नाम महाराज अग्रसेन के नाम पर अग्रोहा रखा गया। नारद ऋषि के मधस्थता से इंद्र और महाराज अग्रसेन में समझौता हो गया। अब राजधानी बदलते हीं बारिश भी होने लगी।

महाराजा अग्रसेन की राजधानी अग्रोहा में लाखों व्यापारी आकर बस गए। महाराज ने एक नियम बना दिया था कि जो भी अग्रोहा में आकर बसता है , उसे सभी एक रुपया और एक ईंट उपहार में देंगे। इसका परिणाम यह हुआ कि जो भी नया अग्रोहा में आया उसके पास लाखों रुपया और घर बनाने के लिए पर्याप्त ईंटें जमा हो जाती थीं। उन लाखों रुपयों से वह नवागन्तुक ख़ुशी ख़ुशी अपना व्यापार शुरू कर लेता था। यह समाजवाद की अनूठी मिसाल थी। कहते हैं कि अग्रोहा के चरम समृद्धि के दिनों में वहाँ लाखों व्यापारी रहा करते थे।

महाराज अग्रसेन के कुल 18 पुत्र हुए। उन सभी 18 पुत्रों के नाम पर उन्होंने 18 अलग अलग ऋषियों से यज्ञ कराये ,जिनसे 18 गोत्र बने। नीचे एक सूची दी जा रही है –

क्रम संख्या ऋषि गोत्र

  1. गर्ग गर्ग
  2. गोभिल गोयल
  3. गौतम गोईंन
  4. वत्स बंसल
  5. कौशिक कंसल
  6. सांडिल्य सिंघल
  7. मंगल मंगल
  8. जैमिन जिंदल
  9. ताण्ड्य तिंदल
  10. अर्ब ऐरन
  11. धौम्य धारण
  12. मुदगल मन्दल
  13. वशिष्ठ बिंदल
  14. मैत्रेय मित्तल
  15. कश्यप कुच्छल
  16. नगेन्द्र नांगल
  17. भद्र भंदल
  18. मधुक मधुकुल

महाराज अग्रसेन ने यह नियम बना दिया कि एक गोत्र में शादियाँ नहीं होंगी ताकि लोग दूसरे गोत्रों में शादी करें ताकि भाई चारे की खुशबू बहुत दूर तक फैले। महाराज अग्रसेन ने एक तरफ व्यवसायियों को व्यवसाय का प्रतीक तराजू प्रतीक चिन्ह दिया तो दूसरी तरफ उन्हें आत्म रक्षार्थ अस्त्र शस्त्र की शिक्षा के लिए भी प्रेरित किया। इनके सारे अनुयाई अग्रवाल कहलाए , जो कि अग्रसेन के अग्र धातु से बना है। महाराज अग्रसेन ने बलि प्रथा पर भी रोक लगा दी।

आस पास के राजाओं से लड़ाई होने के कारण और अग्रोहा में भीषण आग लगने की वजह से अग्रवाल समाज तितर वितर हो पूरे भारत वर्ष में फैल गए , पर महाराज अग्रसेन के दिखाए हुए मार्ग से अग्रवाल समाज रत्ती भर भी नहीं डिगा है। आज अग्रवाल समाज की जनसंख्या भारत की पूरी जनसंख्या के मात्र 1% है , पर भारत के विकास में इनका 24%से ज्यादा योगदान है। दान पुण्य के कामों में इनका 82% योगदान है।

भारतेंदु हरिश्चंद्र , जो कि स्वयं अग्रवाल समाज से सम्बंधित थे ; ने ” अग्रवालों की उत्पति ” नामक एक प्रमाणिक पुस्तक लिखी है , जिसमें अग्रवाल समाज के बावत विस्तार से बताया गया है। इस महान् विभूति को सम्मान देने के लिए 24 सितम्बर सन् 1976 को भारत सरकार ने महाराज अग्रसेन के नाम पर एक डाक टिकट जारी किया और कम्बोडिया से खरीदे गए तेल वाहक जहाज का नाम “महाराज अग्रसेन रक्खा। साथ हीं राष्ट्रीय राज मार्ग (हिसार – सिरसा ) – 10 का नाम भी “महाराज अग्रसेन मार्ग ” रखा गया।

महाराजा अग्रसेन के जीवन के तीन आदर्श थे

  1. लोकतांत्रिक व्यवस्था।
  2. आर्थिक समरूपता।
  3. सामजिक समानता।

उनके राज्य में कोई व्यक्ति लाचार , दुःखी व त्रस्त नहीं था। वे अपने कुल के श्रीराम के राम – राज्य से प्रभावित थे। अपने जीवन के अंतिम दिनों में ज्येष्ठ पुत्र विभु को सत्ता सौंप महाराज अग्रसेन ने सन्यास धारण कर लिया था। 108 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई थी।

हिसार से 20 km की दुरी पर हिसार – सिरसा मार्ग पर 650 एकड़ में महाराज अग्रसेन की राजधानी अग्रोहा के खण्डहर आज भी विद्यमान हैं। उसी के पास एक 500 घरों का गाँव उजड़ी हुई राजधानी की अतीत की यादें संजोए हुए नश्वरता व नीरवता की कहानी कह रहा है –

कहे कहानी ,
अपनी जुबानी।
उजड़े खण्डहर ,
उजड़ी रवानी।

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