डियोगो माराडोना : विवादास्पद व्यक्तित्व

30 अक्तूबर के हीं दिन डियोगो माराडोना का 1960 में अर्जेंटिना के लानूस में जन्म हुआ था । उनका परिवार बहुत गरीब था । तीन बहनों के बाद उनका जन्म हुआ था । उनके बाद दो और भाई हुए , जो पेशेवर फुटबाॅलर हैं । लेकिन जो नाम माराडोना ने कमाया , वह नाम कमाना किसी के वश की बात नहीं । न भूतो न भविष्यति । 10 साल की उम्र में उनका चयन फुटबाल टीम के लिए हुआ । चयन करने वाली संस्था एक प्रतिभा स्काउट थी ।

वे प्रथम श्रेणी के फुटबाल मैचों के हाॅफ टाइम में अपनी जादुई प्रतिभा का प्रदर्शन करते । लोग खुश होते । यही माराडोना के लिए पारितोषिक था । उस समय माराडोना की उम्र 12 वर्ष थी । 20 अक्टूबर 1976 से 16 वर्ष की उम्र से अर्जेंटिना की जूनियर टीम के लिए वे खेलने लगे थे ।

डियोगो माराडोना
डियोगो माराडोना

1983 में माराडोना को हेपाटिटिस रोग हो गया । इसी बीच उनका एक पांव भी टूटा । कैरियर खतरे में पड़ गया । किंतु जीवट किस्म के इंसान थे माराडोना । रोग से लड़ते हुए रोग से निजात पायी । भगवान की दया से उनका टूटा पांव भी ठीक हो गया । शुक्र -ए- खुदा कि आयी बला सर से टल गयी । माराडोना इटली के नापोली क्लब की तरफ से खेलने लगे । माराडोना के इस क्लब से खेलने पर यह क्लब 1987 में कोपा इटालिया में प्रथम , 1989 में द्वितीय , 1990 में इटालिया सुपर कप में प्रथम रहा था । परंतु इस क्लब की तरफ से खेलते हुए माराडोना की व्यक्तिगत समस्याओं की वृद्धि हुई । वे कोकीन का सेवन करने लगे । ड्रग परीक्षण में ये पकड़े गये । इन पर 15 महीने का बैन लगा । क्लब ने 70,000 अमेरिकी डाॅलर का जुर्माना लगाया । 1992 में अपमानित माराडोना ने नापोली क्लब छोड़ दिया ।

विश्व कप माराडोना ने हमेशा अपने देश आर्जेंटिना से खेला । 1982 के विश्व कप में माराडोना कुछ खास नहीं कर पाये थे । 1986 विश्व कप में केवल माराडोना हीं नजर आए । इस विश्व कप के क्वार्टर फाइनल मैच में माराडोना के दो गोल अभूतपूर्व थे । एक गोल तो माराडोना ने हाथ से किया था । रेफरी की नजर में न आने के कारण यह गोल मान लिया गया । बाद में रिप्ले में यह नजर आया । जब रेफरी निर्णय दे देता है तो वह बदला नहीं जाता । इसलिए इसे गोल मान लिया गया । यह गोल आज भी फुटबाल के इतिहास में ” हैण्ड आॅफ गाॅड ” के नाम से मशहूर है । यह नाम स्वंय माराडोना का दिया हुआ है । माराडोना का कहना था कि हैण्ड बाॅल में मेरा हाथ न होकर भगवान का हाथ था । दूसरा गोल ” सदी का सर्वश्रेष्ठ गोल ” के नाम से विख्यात हुआ । इस गोल को माराडोना ने गोलकीपर समेत 5 आऊट फील्ड खिलाड़ियों को छकाते हुए किया था । इस गोल को करते समय माराडोना ने 11 बार गेंद को छुआ था ।

” सदी का सर्वश्रेष्ठ गोल ” करते हुए आर्जेंटिना के अज्टेका स्टेडियम के प्रवेश द्वार पर माराडोना की मूर्ति आज भी लगी है । 1986 के विश्व कप फाइनल में आर्जेंटिना की भिड़॔त पश्चिम जर्मनी से हुआ था , जिसमें आर्जेंटिना 3-2 से विजयी रहा था । इस मैच में माराडोना ने एक गोल ड्रिवलिंग करते हुए मारा था । यह गोल ड्रिवलिंग का अद्भुत नमूना था । इस विश्व कप में डियोगो माराडोना ने 5 गोल किए और 5 के हीं लिए अद्भुत पास दिए थे । 1990 के विश्व कप में माराडोना टखने की चोट की वजह से कुछ नहीं कर पाये थे । माराडोना का सर्वश्रेष्ठ न दे पाने के कारण आर्जेंटिना को महज दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था ।

छोटे कद के माराडोना गेंद पर तब तक नियंत्रण रखते थे , जब तक कि वे गोल न कर देते या अपने किसी साथी को पास नहीं दे देते थे । माराडोना का शरीर चुस्त दुरूस्त था । उनमें भाग दौड़ में बला की ताकत थी । उनकी किक जानदार हुआ करती थी । फीफा 2000 के एक सर्वे में उन्हें ” प्लेयर आॅफ दि सेंचुरी ” का अवार्ड मिला था । इस सर्वे में उन्हें 53.46 % मत इंटरनेट के जरिए मिले थे । बाद में फुटबाॅल विशेषज्ञों ने पेले को भी ” प्लेयर ऑफ दि सेंचुरी ” चुना । इस बात से माराडोना इतने नाराज हुए कि वह समारोह हीं छोड़कर चले गये । वे पेले के एवार्ड देते समय हाजिर नहीं थे । यह कृत्य उनके बददिमागी को दर्शाने के लिए काफी था । दो दो पत्नियों को तालाक देने वाले माराडोना आजकल निहायत हीं तन्हा जीवन बशर कर रहे हैं ।

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